Being Nachiket
Always, there is a sense in a nonSENSE !
Wednesday, September 19, 2012
तो
तो तसाच काठाशी बसणारा
मी सतत गटान्गल्या खाणारा
तो संथ विरहे
मी नुसताच फडफडणारा
तो क्षणिक गारवा
मी एक तिरीप
तो एक सुंदर लकेर
मी रुक्ष घरघर
तो निवांत तळ
मी कस्तूरीमृग ...
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