Sunday, March 21, 2010

प्रवाह

ती येऊ म्हणाली ??
मी नको बोललो ...
तू तू मी मी च्या द्वंद्वात
दोघेही निकट जाहलो ...

गेले ते दीस
पाडूनी डोक्याचा किस
शोधण्या अनन्त बहाणे
पण आता दोघेही झालोत शहाणे...

आता पुरते फक्त एक दृष्टिभेट
होण्यास समेट ...
या वालवाच्या पावसात चिम्ब चिम्ब नाहलो
अन या बेभान प्रवाहात दोघेही नकळत वाहलो ...


PS: i wrote dis poem at old canteen..d first 2 lines were suggested by my friends n throw a challenge at me to make a meaningful (?) poem out of it...n here is wat i came out..they all loved it, but im still not sure how it goes.....

1 comment: